लखनवी अंदाज नवाब साहब लेखक से अधिक शिष्ट और सभ्य थे
लेखक यशपाल द्वारा रचित 'लखनवी अंदाज' कहानी में नवाब साहब और लेखक के चरित्रों का बड़ा ही दिलचस्प चित्रण किया गया है। कहानी में लेखक ने नवाब साहब की नवाबी शान और दिखावटी जीवनशैली पर व्यंग्य किया है, लेकिन गहराई से विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि नवाब साहब लेखक की तुलना में कहीं अधिक शिष्ट और सभ्य थे। इस बात को हम निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से समझ सकते हैं:
नवाब साहब का शिष्टाचार
सबसे पहले, नवाब साहब की शिष्टता उनके बातचीत करने के तरीके में झलकती है। जब लेखक ट्रेन में उनके डिब्बे में प्रवेश करते हैं, तो नवाब साहब तुरंत उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं होते। वे लेखक को पहले सहज होने का समय देते हैं। इसके विपरीत, लेखक तुरंत उनसे बातचीत शुरू करने की कोशिश करते हैं। नवाब साहब धीरे-धीरे बातचीत शुरू करते हैं और लेखक के सवालों का जवाब भी शालीनता से देते हैं। वे अपनी नवाबी शान को बरकरार रखते हुए भी लेखक के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं। उनकी हर बात में एक सलीका और तहजीब नजर आती है, जो उनकी उच्च कुल की पहचान होती है। वे बनावटी अंदाज में ही सही, लेकिन लेखक को महसूस कराते हैं कि वे एक खास मेहमान हैं। नवाब साहब की यह शालीनता दिखाती है कि वे दूसरों की भावनाओं का कितना ध्यान रखते हैं। उन्होंने लेखक को अपने साथ खीरे खाने के लिए आमंत्रित किया, जो उनकी मेहमाननवाजी का एक अच्छा उदाहरण है। भले ही उन्होंने खीरा खाया नहीं, लेकिन उन्होंने लेखक को अपने साथ शामिल करने का प्रयास किया, जो उनकी शिष्टता को दर्शाता है। इसके विपरीत, लेखक का व्यवहार थोड़ा जल्दबाजी वाला और उत्सुक दिखता है। वे नवाब साहब की निजी जिंदगी में तांक-झांक करने की कोशिश करते हैं, जो कि उचित नहीं है। लेखक की उत्सुकता और नवाब साहब की शालीनता के बीच का यह अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। नवाब साहब की हरकतों में एक ठहराव और गंभीरता है, जबकि लेखक में एक जिज्ञासु और खोजी स्वभाव झलकता है। इस प्रकार, बातचीत के तौर-तरीकों में नवाब साहब लेखक से कहीं अधिक सभ्य और शालीन नजर आते हैं।
दिखावे में भी सभ्यता
दूसरा, नवाब साहब का दिखावा भी सभ्यता के दायरे में है। वे अपनी नवाबी शान दिखाने के लिए खीरे को धोते, काटते और सजाते हैं। वे खीरे पर नमक और मिर्च भी छिड़कते हैं, लेकिन अंत में उसे बिना खाए ही खिड़की से बाहर फेंक देते हैं। उनका यह कार्य दिखावटी जरूर है, लेकिन इसमें भी एक तरह की शालीनता है। वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं और न ही किसी का अपमान कर रहे हैं। वे सिर्फ अपनी नवाबी शान का प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके विपरीत, लेखक का नजरिया थोड़ा आलोचनात्मक है। वे नवाब साहब के इस दिखावे को पसंद नहीं करते और उन पर व्यंग्य करते हैं। लेखक का यह व्यवहार थोड़ा असभ्य लगता है, क्योंकि वे किसी की निजी पसंद पर सवाल उठा रहे हैं। नवाब साहब का दिखावा उनकी निजी पसंद का मामला है और लेखक को इस पर इस तरह से टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी। दिखावे में भी एक तरह की कला होती है, और नवाब साहब उस कला को बखूबी निभा रहे थे। उनका हर कार्य, जैसे खीरे को धोना, काटना, सजाना और फिर उसे खिड़की से बाहर फेंकना, एक तरह का प्रदर्शन था। इस प्रदर्शन में उन्होंने अपनी नवाबी शान को बनाए रखा और किसी को ठेस भी नहीं पहुंचाई। यह उनकी सभ्यता और शालीनता का ही प्रमाण है कि उन्होंने दिखावे में भी मर्यादा का पालन किया। लेखक का नजरिया यहाँ थोड़ा संकीर्ण लगता है, क्योंकि वे नवाब साहब के दिखावे के पीछे की भावनाओं को समझने में असफल रहे।
खानदानी तहजीब
तीसरा, नवाब साहब की खानदानी तहजीब भी उन्हें लेखक से श्रेष्ठ बनाती है। वे एक नवाबी परिवार से ताल्लुक रखते हैं और उनके तौर-तरीकों में खानदानी तहजीब झलकती है। वे हर काम सलीके से करते हैं और अपनी नवाबी शान को बरकरार रखते हैं। उनका उठना-बैठना, बात करना और यहां तक कि खीरा खाने का तरीका भी उनकी खानदानी तहजीब का हिस्सा है। इसके विपरीत, लेखक एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं और उनके व्यवहार में वह खानदानी तहजीब नहीं दिखती है। लेखक का नजरिया थोड़ा व्यावहारिक और सीधा-सादा है, जबकि नवाब साहब का नजरिया थोड़ा दिखावटी और औपचारिक। खानदानी तहजीब व्यक्ति को एक विशेष प्रकार का अनुशासन और मर्यादा सिखाती है। नवाब साहब ने उस अनुशासन और मर्यादा का पालन किया, जबकि लेखक का व्यवहार अधिक सहज और अनौपचारिक था। नवाब साहब की हर हरकत में एक नजाकत और नफासत थी, जो उनकी खानदानी पृष्ठभूमि का परिणाम थी। वे जानते थे कि कैसे अपनी शान और शौकत को बनाए रखना है, और उन्होंने इसे बखूबी निभाया। लेखक, अपनी जगह पर, अधिक वास्तविक और जमीनी थे, लेकिन उनमें नवाब साहब की तरह खानदानी तहजीब की गहराई नहीं थी। इस प्रकार, खानदानी तहजीब के मामले में नवाब साहब लेखक से कहीं आगे थे।
शिष्टाचार का पालन
चौथा, नवाब साहब ने लेखक के प्रति हमेशा शिष्टाचार का पालन किया। जब उन्होंने खीरा खाने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने लेखक को बुरा न लगे, इसलिए एक बहाना बनाया। उन्होंने कहा कि उनका पेट खराब है और वे खीरा नहीं खा सकते। उनका यह व्यवहार दिखाता है कि वे लेखक की भावनाओं का कितना सम्मान करते हैं। यदि वे चाहते तो सीधे-सीधे खीरा खाने से इनकार कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने एक ऐसा बहाना बनाया जिससे लेखक को बुरा न लगे। इसके विपरीत, लेखक का व्यवहार थोड़ा आलोचनात्मक और व्यंग्यात्मक था। वे नवाब साहब के बहाने को समझ गए थे, लेकिन उन्होंने इस पर व्यंग्य करने से खुद को नहीं रोका। लेखक का यह व्यवहार थोड़ा असभ्य लगता है, क्योंकि वे किसी की मजबूरी का मजाक उड़ा रहे हैं। नवाब साहब ने लेखक की भावनाओं का ख्याल रखा, जबकि लेखक ने नवाब साहब की भावनाओं का उतना सम्मान नहीं किया। शिष्टाचार का पालन करना एक महत्वपूर्ण गुण है, और नवाब साहब ने इस गुण का प्रदर्शन किया। उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उनके व्यवहार से किसी को ठेस न पहुंचे, और उन्होंने अपनी बातों और कार्यों में शालीनता बनाए रखी। लेखक का व्यवहार, तुलनात्मक रूप से, थोड़ा अधिक आलोचनात्मक और सीधा था, जिसमें शिष्टाचार की उतनी गहराई नहीं थी।
निष्कर्ष
संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि नवाब साहब लेखक की तुलना में अधिक शिष्ट और सभ्य थे। उनके बातचीत करने के तरीके, दिखावे, खानदानी तहजीब और शिष्टाचार के पालन में यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। भले ही नवाब साहब का जीवन दिखावटी था, लेकिन उन्होंने अपनी सभ्यता और शालीनता को हमेशा बनाए रखा। उन्होंने कभी भी किसी का अपमान नहीं किया और हमेशा दूसरों की भावनाओं का सम्मान किया। इसलिए, 'लखनवी अंदाज' कहानी के आधार पर यह कहना उचित है कि नवाब साहब लेखक से अधिक शिष्ट और सभ्य थे। दोस्तों, आप क्या सोचते हैं? क्या आपको भी यही लगता है कि नवाब साहब लेखक से ज्यादा तहजीबदार थे? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं!